देख लो कुछ ख्वाब की हकीकत की आहट आती ही होगी,
मांग लो उनसे भी तुम जवाब,की सवालों की बरात ये रात बुलाती ही होगी.
फिर न कहना तकदीर से अगर अंगारों सी लथपथ हो जाए वो हर शाम,
ज़िन्दगी को सज़ा लो ख्वाबों से,वर्ना मांग लेगी इस वीरानियत के वो भी दाम.
अक्सर भूल क्यों जाते हो की ख्वाबों की कोई शर्त नहीं हुआ है करती,
न दिन इन्हें भुला पाते है,न आँखों की रौशनी में इनकी हैसियत है बसती.
अपने अक्स के ठहराव को देख मायूस होने से पहले ये तो सुन,
की तेरे ख्वाबों की सच्चाई के धागों से ही तो खुदा रहा तेरी ज़िन्दगी बुन.
हर पल आँखें मूँद अपने माजी से पूछ की क्या है वो जो है तुझे पसंद,
मर्ज़ है क्या ये जान ले मन का,की दवा तेरी ही फितरत में है बंद.
अपने चेहरे से ग़म का पर्दा हटा देख,तेरी मासूमियत तुझे पुकारती है,
इबारत में ख्वाबों की चादर चढ़ा कर देख,मंजिल तुझे खुद लेने आती है.
awesome one!
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