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Thursday, October 27, 2011

Aao,Ek Diya Jalayein....


                                                      


       



आओ,एक दिया जलाएं ....

अपने मन के अंधकार में आओ हम आज सेंध  लगाएं ,
प्रफुल्लित हो जाए जग सारा ,आओ ,एक दिया जलाएं .


रोशनी का वो पुंज जो बाट जोह रहा तेरे प्रण की ,
तमस की वो निशा जो राह देखती सवेरे की,जीवन की ,
आज आओ हम कर्म की वो दियासलाई लाएं ,
छोटा ही सही,पर आओ आज पुण्य का एक नया दिया जलाएं .



बहुतेरे थके है,बहुतेरे रुके है,पर तू न थमना ,
कुछ दिए जल चुके,कुछ बुझ गए,पर तू न मचलना,
उस जीवन की लौ के लिए आओ थोड़ा और तेल लाएं,
जो न जला सके,उनकी ही खातिर आओ आज एक और दिया जलाएं.


जिनके माथे पर बल है अनेक,जिनके चेहरे पर चिंताओं का है सदा बसेरा,
जिन्होंने न जाना मतलब ख़ुशी का,न जाने वो क्या होता है सवेरा,
उनके जीवन की तपन को आओ आज निर्मल बन पी जाएँ,
अपनी खुशियों की फुलझड़ियों से आज उनके भी जीवन में आनंद का वो पहला द्वीप जलाएं .


डालो नकेल उस दुर्भाग्य में जो निर्भीक विचरण कर रहा तेरे मन अभ्यारण में,
खोलो द्वार आज तुम सब सारे,स्वप्न और प्रज्वलित करो अपने और दूज नयन में ,
खुशियों के घोड़े दौडाओं,अपनी कल्पनाओं को नवीन पंख लगाओ,
आज आओ दुर्बलता के अंधड़ से न घबराएं,फिर उम्मीद का वो नव -द्वीप जलाएं.

मिटटी का ही है वो दिया जो रोशनी देता जग भर,
कर्म का ही है वो सिला जो उत्सव बने जीवन भर,
महत्व इनका समझे आज,बोध ज्ञानी हो जाएँ,
छोड़ पुराने द्वेष और रंज,आओ मानवता का दिया जलाएं.


कठिनाईयों को बल न दे,दुर्जन को दे ललकार,
समय की चाल को समझ,न कर पराजय को स्वीकार,
अपने बालहठ को आओ जीवन रोपण में लगाएं,
जान सेवा और मन सेवा करें,आओ मन में दया का वो एक तो चिराग लगाएं.


सम्बल कर आज उन्हें  जो है तेरे साथ,
उज्जवल कर उन सभी को जो सुन रहे तुझ को आज,
अपने चहुँ ओर दीपों की मालाओं का एक तेज लगाएं,
आओ हम तुम हाथ बढाकर इस जग का अंधकार मिटायें ...


आओ,एक दिया जलाएं....

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